It ELEMENT OF CIVIL RIGHT, JURISDICTION,CIVIL PROCEDURE CODE,1908 (NOTES) PART 6 - CHAMARIA LAW CLASSES

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Wednesday, June 3, 2020

ELEMENT OF CIVIL RIGHT, JURISDICTION,CIVIL PROCEDURE CODE,1908 (NOTES) PART 6

Qus :- राजस्व न्यायालय क्या है ?

Ans :- जो स्थानीय विधि के अधीन कृषि प्रयोजन हेतु प्रयुक्त भूमि के भाटक, राजस्व, लाभ संबंधी वाद व अन्य कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता रखें ।

Qus :- क्षेत्राधिकार का क्या अभिप्राय है ?

Ans :-किसी न्यायालय की विषय वस्तु की प्रकृति स्थानीयता  एवं आर्थिक मूल्य के आधार पर वाद अपील का आवेदन ग्रहण करने की सक्षमता ।

धारा 9 :- जब तक अन्यथा वर्जित ना हो सभी सिविल न्यायालय सिविल वादों का विचारण करेंगे |

Qus :-सिविल न्यायालय की अधिकारिता से क्या अर्थ है ?

Ans :- सभी न्यायालय दीवानी प्रकृति के सभी वादों का विचारण करने का क्षेत्राधिकार रखेंगे केवल उन वादों को छोड़कर जिनका संज्ञान अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से वर्जित है |

स्पष्टीकरण 1 :- यदि वाद में संपत्ति या पद संबंधी अधिकार विवादित है और ऐसा अधिकार धार्मिक कृत्यों के प्रश्नों के विनिश्चय पर निर्भर है तो वह दीवानी प्रकृति का होगा |

स्पष्टीकरण 2 :- इस धारा के स्पष्टीकरण एक के प्रयोजन के तू यह बात महत्वहीन है कि पद के साथ कोई फीस जुड़ी है या नहीं या पद विशेष स्थान से जुड़ा है या नहीं |

(NOTE) :-  यह स्पष्टीकरण 1976 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया है |

 ELEMENT (तत्व)

  • दीवानी प्रकृति का वाद दीवानी प्रकृति का हो | 
  • ऐसे वाद का संज्ञान अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से वर्जित ना हो | 
Qus :- दीवानी प्रकृति का वाद क्या है ?

Ans :- ऐसा वाद  जिसमे  मुख्य प्रश्न दीवानी अधिकारों के निर्धारण और प्रवर्तन से संबंधित है |  (धारा 9 स्पष्टीकरण 1)

Qus :- दीवानी प्रकृति के बाद कौन-कौन से हैं ?

Ans :- संपत्ति संबंधी अधिकार पूजा करने का अधिकार, धार्मिक जुलूस का अधिकार, भागीदारी, लेखा, अब तक की क्षतिपूर्ति संविदा भंग विवाह विच्छेद या दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना किराए पर वेतन स्थाई व्या देश प्रबंधन विशिष्ट अनुतोष जन्मतिथि में सुधार विद्युत बिल में भिन्नता संबंधी वाद दीवानी प्रकृति के हैं

Qus :-दीवानी प्रकृति के बाद कौन-कौन से नहीं है ?

Ans :-जाति संबंधी प्रश्नों से अंतर ग्रस्त, राजनीतिक प्रश्न ,लोक नीति के विरुद्ध, केवल गरिमा व सम्मान बनाए रखना, अधिनियम द्वारा वर्जित, औद्योगिक विवाद, विशुद्ध रूप से धार्मिक अधिकार व अनुष्ठान संबंधी जहां वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हो, संबंधित वाद दीवानी प्रकृति के नहीं है |

Qus :- अभिव्यक्त रूप से वर्जित से क्या अभिप्राय है ?

Ans :- जब कोई वाद प्रचलित या लागू किसी अधिनियम द्वारा वर्जित किया गया हो जैसे - रेवेन्यू कोर्ट, दंड प्रक्रिया संबंधी मामले, चुनाव अधिकरण, औद्योगिक अधिकरण, आयकर अधिकरण आदि |

Qus :- गर्भित रूप से वर्जित से क्या अभिप्राय है ?

Ans :- जब कोई वाद विधि के सामान्य सिद्धांत के अंतर्गत वर्जित हो |

(NOTE) :-वैकल्पिक उपचार में क्षेत्राधिकार गर्वित रूप से वर्जित है |

स्थानीयता संबंधी क्षेत्राधिकार  :-

वाद स्थानीय अधिकारिता रखने वाले सक्षम न्यायालय में पेश किया जाएगा |
 स्थानीयता  संबंधी उपबंध धारा 15 से 20 में दिए गए हैं |

धारा 15 :- वह न्यायालय जिसमें वाद दायर किया जाएगा |

प्रत्येक वाद निम्नतम श्रेणी के न्यायालय में दायर किया जाएगा जो उसका विचारण करने में सक्षम है यहां धारा 15 न्यायालय का आर्थिक क्षेत्राधिकार बताती है | 

  • सिविल न्यायालय कनिष्ठ खंड ( 0 से 25,000/- तक )
  • सिविल न्यायालय वरिष्ठ खंड (25,001 से 50,000 तक )
  • जिला न्यायालय ( 50,001 से ऊपर )
धारा 16 :- वाद वहां दायर किए जाएंगे जहां वाद की विषय वस्तु स्थित है |

आर्थिक व अन्य सीमाओं में रहते हुए वह वाद जो अचल संपत्ति की वसूली व पुन:प्राप्ति के लिए, विभाजन के लिए ,पुरोबन्ध , विक्रय, मोचन, किसी हित , नुकसान के मुआवजे के लिए, व चल  संपत्ति की पुन: प्राप्ति के लिए जो कुर्की के अधीन है वहां वाद दायर होंगे जहां ऐसी संपत्ति स्थित है |

धारा 17:- अचल संपत्ति अलग-अलग न्यायालय के क्षेत्राधिकार में हो |

ऐसी अचल संपत्ति के बारे में अनुतोष लेने या पहुंचे नुकसान का मुआवजा लेने के लिए ऐसे किसी भी न्यायालय में वाद दायर किया जा सकता है जिसके क्षेत्राधिकार में उसका कोई भाग स्थित है किंतु शर्त यह है कि संपत्ति का संपूर्ण मूल्य उस  न्यायालय के आर्थिक  क्षेत्राधिकार में हो |

धारा 18 :- स्थानीय सीमा में अनिश्चितता |

ऐसी स्थिति में कोई भी न्यायालय अनिश्चितता रिकॉर्ड करके मामले का परीक्षण कर सकेगा |

धारा 19 :- शरीर या चल संपत्ति को पहुंचाई क्षति के लिए वाद

ऐसी स्थिति में वाद :-

  1. जिस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में वे क्षति पहुंची है | 
  2. उच्च न्यायालय में जिस के क्षेत्राधिकार में प्रतिवादी निवास या कारोबार या लाभ के लिए कार्य करता है |     में  दायर किया जा सकता है | 
जैसे :- A दिल्ली निवासी B के विरुद्ध कोलकाता में मानहानिकारक कथन प्रकाशित करता है B कहां वाद लाए               कोलकाता अथवा दिल्ली कहीं पर वाद दायर कर सकता है |

धारा 20 :- अन्य वाद कहां दायर किए जाएंगे |

ऐसे वाद _

  1.  जहां प्रतिवादी निवास करें 
  2. और जहां वाद हेतु पैदा हो    
            में दायर किए जाएंगे |
            अथवा
            ऐसे वाद ऐसे न्यायालय की स्थानीय क्षेत्राधिकार में दायर होंगे -

  1.  जहां प्रतिवादी या प्रतिवादियों में से प्रत्येक वाद  प्रारंभ के समय वास्तव में स्वेच्छा निवास, कारोबार या लाभ हेतु कार्य करता है
  2.  प्रतिभागियों में से कोई वाद प्रारंभ के समय वास्तव में स्वेच्छया  निवास, कारोबार या लाभ हेतु कार्य करता है किंतु-  (1) ऐसे मामलों में या तो न्यायालय  की अनुमति ली गई हो या (2) अन्य प्रतिवादी की सहमति ली गई हो
  3.  वाद कारणपैदा हो |
जैसे -A हनुमानगढ़, B गंगानगर, C सूरतगढ़ निवास करता है तीनों बीकानेर इकट्ठे होते हैं वहां B और C संयुक्त वचन बना कर B व C को दे देते हैं बाद में दोनों वचन पालन से इनकार कर देते हैं | A बीकानेर में जहां वाद कारण पैदा हुआ वाद दायर कर सकेगा अथवा गंगानगर व सूरतगढ़ में से कहीं भी न्यायालय की अनुमति से या अन्य प्रतिवादी की सहमति से वाद दायर कर सकेगा |

Qus :- कभी-कभी पक्षकार करार कर लेते हैं कि विवाद की स्थिति में किसी स्थान विशेष के न्यायालय में ही दावा किया जाएगा क्या ऐसा करार किया जा सकता है ?

Ans :- हां,  ऐसा करना स्पष्ट व अन्य न्यायालय की अधिकारिता का अपवर्जन करने वाला नहीं होना चाहिए वहां पर सक्षम न्यायालय होना चाहिए जो पक्षकारों द्वारा तय किया गया हो | 

case :- Mas. Hinal Uro Textile Ltd. v/s Uro Matrik Filter Pra. Ltd. ( AIR 2001 SC 2432)

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