शाश्वता के विरूध्द नियम
Qus :- शाश्वता के विरूध्द नियम से आप क्या समझते है ? व्याख्या कीजिए तथा इस सिध्दान्त के अपवाद को समझाइए |
धारा 14 के अनुसार :- एक व्यक्ति एक संपत्ति को लंबे समय तक बांधकर नहीं रख सकता यदि वह अंतरण द्वारा ऐसा प्रबंध करता है तो वह शून्य होगा यही शाश्वता के विरुद्ध नियम है।
अंतरणकर्ता अंतरण करते समय यह निर्देश दे सकता है कि अजन्मे व्यक्ति में संपत्ति व्यस्क होने पर ही निहित होगी व्यसकता के ऊपर निर्देश देना शून्य होगा ।
Ex . एक अव्यस्क व्यक्ति को संपत्ति का अंतरण 15 वर्ष तक कर दिया जाता है तो यह वैध होगा यदि यह शर्त लगाई जाती की संपत्ति अजन्मे व्यक्ति को 25 वर्ष की उम्र में मिलेगी तो अंतरण शुन्य होगा ।
Note :- शाश्वता के विरुद्ध नियम चल व अचल दोनों तरह की संपत्तियों के विरुद्ध होता है ।
शाश्वता की अवधि
शाश्वता की अवधि से आप क्या समझते हैं ?
अंतरणकर्ता निश्चित अवधि के उपरांत संपत्ति के निहित होने को स्थगित नहीं कर सकता जिस अवधि तक स्थगित करता है वही शाश्वता की अवधि है ।
भारत में किसी संपत्ति का अंतरण कितने ही व्यक्तियों को जीवन काल तक वे उसके पश्चात 18 वर्ष तक (अधिकतम) की अवधि के लिए हित का निहित होना स्थगित किया जा सकता है ।
अर्थात
- अजन्मे को पुर्व हित की समाप्ति के बाद संपूर्ण अवशिष्ट हित दिया जाना चाहिए ।
- निश्चित अधिकतम अवधि के अंदर सृजित निहित हित उसमें निहित हो जाना चाहिए ।
- अजन्मे में सृजित हित तभी प्रभावशाली होगा जब उसका जन्म पुर्व हित की समाप्ति के पश्चात हो ।
Ex. A, B के पक्ष में आजीवन हित, C के पक्ष में भी आजीवन हित अंतरित करता है , इसके पश्चात D के पक्ष में भी जो कि अजन्मा है आजीवन हित अंतरित करता है तो यह अवैध होगा ।
यहां पर D के पक्ष में A को पूर्ण हित अंतरित करना था तभी ऐसा अंतरण वैध होता ।
Case :- Anand Rao Vinayak versus administration journal of Bombay
एक पिताने अपने पुत्र को एक चल संपत्ति दान की साथ ही संपत्ति का कुछ हिस्सा अपने पुत्र के अजन्मे पुत्र को इस शर्त पर दान किया कि वह इसे 21 वर्ष का होने पर प्राप्त करेगा इस अंतरण को शाश्र्वता के विरुद्ध नियम होने के कारण माना गया।
अपवाद :- व्यक्तिगत संविदाए :-
Case :- Nafar Chandra versus Kailash Chandra
इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत संविदाओ में से किसी संपत्ति में हित का निर्माण नहीं होता है इसलिए ऐसी संविदाओ में शाश्वता के विरुद्ध नियम लागू नहीं होता है ।
इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत संविदाओ में से किसी संपत्ति में हित का निर्माण नहीं होता है इसलिए ऐसी संविदाओ में शाश्वता के विरुद्ध नियम लागू नहीं होता है ।
Ex :- A ने B को पुजारी नियुक्त किया तथा करार किया कि B के परिवार वालों को ही पीढ़ी दर पीढ़ी पुजारी नियुक्त किया जाएगा इसे वैध माना जाएगा ।
A ने B को एक संपत्ति का 10 वर्षों के लिए पट्टा किया तथा यह शर्त थी कि 10 वर्षों के बाद पट्टा ग्रहिता भी चाहे जितने समय के लिए नवीनीकरण करवा सकता है यहां शाश्र्वता का नियम लागू नहीं होता है ।
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https://youtu.be/wPIsbvfQU_I
धार्मिक या लोक लाभ के लिए अंतरण :-
धारा 18 के अनुसार :-
शाश्वता के विरुद्ध नियम ऐसे अंतरण पर लागू नहीं होता जिसका उद्देश्य जनता की भलाई शिक्षा धर्म वाणिज्य स्वास्थ्य आदि की उन्नति हो क्योंकि ऐसे मामलों में संपत्ति सदा के लिए संसारिक प्रयोजनों से पृथक मान ली जाती है ।
भार ( charge) :-
जब संपत्ति पर केवल भार आरोपित किया गया है तो यह नियम लागू नहीं होता क्योंकि भार द्वारा किसी प्रकार का हित अंतरित नहीं होता ।Ex . पट्टे का अनुबंध :-
A ने B को एक संपत्ति का 10 वर्षों के लिए पट्टा किया तथा यह शर्त थी कि 10 वर्षों के बाद पट्टा ग्रहिता भी चाहे जितने समय के लिए नवीनीकरण करवा सकता है यहां शाश्र्वता का नियम लागू नहीं होता है ।
भारतीय तथा अंग्रेजी विधि में अंतर
शाश्वता अवधि :-
- भारत में यह अवधि पुर्व हित तथा अव्यस्कता की आयु है जबकि अंग्रेजी विधि में पुर्व हित के साथ 21 वर्ष की आयु शाश्वता अवधि कहलाती है ।
- अंग्रेजी विधि वर्तमान तथा भविष्य दोनों अंतरणो में लागू होती है जबकि भारतीय विधि केवल भविष्य के हितों के सृजन पर लागू होती है भूतकाल पर नहीं लागू होती अर्थात यदि कोई हित निहित हो जाता है तो शाश्वता के विरुद्ध नियम लागू नहीं होगा ।
धार्मिक ट्रस्ट :-
अंग्रेजी विधि में से अपवाद नहीं माना गया है जबकि भारत में यह अपवाद की श्रेणी में आता है ।Youtube link For this topic
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