धारा 25 :- वाद अंतरण की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति :-
- किसी पक्षकार के आवेदन पर अन्य पक्षकारों को सूचित करने व सुनने पर न्यायालय न्याय की प्राप्ति के लिए आदेश दे सकेगा कि किसी राज्य के किसी उच्च न्यायालय या सिविल न्यायालय से अन्य राज्य की उच्च न्यायालय या सिविल न्यायालय को कोई वाद अपील या कार्यवाही अंतरित कर दी जाएगी । {धारा 25 (1)}
- आवेदन के साथ शपथ पत्र संलग्न करना होगा । {धारा 25(2)}
- अगर आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो न्यायालय आवेदक से दूसरे पक्षकार को प्रतिकार के रूप में ₹2000 तक की राशि दिलवा सकेगा | जिसे वह न्यायालय परिस्थितियों में उचित समझे ।{ (धारा 25 (4)}
विचाराधीन न्याय :-
- अगर किसी सक्षम न्यायालय में कोई दावा किया जा चुका है और वह दावा लंबित है तो उन्हीं पक्षकारों के मध्य उसी विषय वस्तु के बारे में उन्हीं विवाधको पर दुबारा दावा नहीं किया जा सकता ।
- अगर ऐसा दूसरा दावा किया जाता है तो वह धारा 10 सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा वर्जित है ।
- धारा 10 का उद्देश्य वादों की बहुलता को रोकना है तथा समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखना है ।
Qus :- विचाराधीन न्याय कब लागू नहीं होगा ?
Ans :-
- अगर प्रथम दावा सक्षम न्यायालय में पेश नहीं किया गया है |
- अगर दावा न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया है ।
- अगर दावा विदेशी न्यायालय में दायर किया गया है ।
- विदेशी न्यायालय में दावा लंबित हो और उसी आधार में भारत में दावे कर सकते हैं ।
Qus :- विचाराधीन न्याय लागू करने की शर्त बताओ ?
Ans :- अगर एक दावे के लंबित रहते हुए दूसरा दावा दायर करना दोनों दावो में पक्षकार एक ही हो या उनके विधिक प्रतिनिधि, पक्षकारों की परिस्थिति एक हो, दोनों में विषय वस्तु एक हो, दोनों में विवाधक सारभूत रूप से एक हो ।
धारा 11 :- पूर्वी - न्याय (Res judicata)
पूर्वी - न्याय वाद और विवाधक दोनों पर लागू होता है |
Qus :- पूर्वी-न्याय (Res judicata) सिद्धांत संबंधित सूत्र बताओ ?Ans :- किसी भी व्यक्ति को एक ही बात कारण के लिए दोबारा परेशान न किया जाए और राज्य का हित इसमें है कि मुकदमों का अंत हो ।
Res judicata का अभिप्राय क्या है ?
ऐसी वस्तु जिस पर पहले फैसला हो चुका है ।
Note :- कोई भी न्यायालय ऐसे विवाधक का परीक्षण नहीं करेगा जिसमें प्रत्यक्षत: व सारत विवादास्पद विषय उन्हीं पक्षकारो के मध्य किसी सक्षम न्यायालय द्वारा सुनकर अंतिम रूप से निर्णित कर दिए गए हो ।
Qus :- प्राड़- न्याय (पूर्वी-न्याय) के आवश्यक तत्व बताओ ?
Ans :-
- दो वाद पूर्ववर्ती व पश्चातवर्ती हो ।
- दोनों वादों में विवाधक प्रत्यक्षत: व सारत समान हो ।
- समान पक्षकार एक ही हक में वाद संस्थित करें ।
- पूर्ववर्ती वाद सक्षम न्यायालय द्वारा अंतिम रूप से निपटाया गया हो ।
Qus :- प्रत्यक्षत:, सारत विवाधक से क्या अभिप्राय है ?
Ans :- ऐसा विषय है जिस पर एक पक्षकार कथन करें वह दूसरा पक्ष कार इंकार करें प्रत्यक्षत: सारत विवाधक है |
Qus :- प्रासंगिक या सहायक विवाधक से क्या अभिप्राय हैं ?
Ans:- ऐसे विषय जिनके बारे में उपचार की मांग नहीं की जाती बल्कि प्रत्यक्षत: व सारत विवाधक को निर्णीत करने के लिए सहायक के रूप में बनाए जाते हैं ।
Qus :- क्या प्रासंगिक विवाधक पूर्वी-न्याय res judicata के रूप में लागू होते हैं ?
Ans :- नहीं, क्योंकि यह प्रत्यक्षत: सारत विवाधक को निर्णीत करने के लिए काम में लिए जाते हैं ।
Qus :- परिलक्षित व आणविक रूप से विवाधक का क्या अभिप्राय है ?
Ans :- कोई विषय परिलक्षित व आणविक रूप से विवाधक तब होता है जब वह विषय पूर्ववर्ती वाद में आक्रमण या रक्षा का आधार बनाया जा सकता था या बनाया जाना चाहिए था | {धारा(11 स्पष्टीकरण 4)}
Qus :- सहवादी और सहप्रतिवादी के मध्य पूर्वी-न्याय लागू करने की शर्त क्या है ?
Ans :-
- प्रति वादियों के मध्य हितों का टकराव होने पर
- वादी को अनुतोष देने के लिए ऐसे टकराव का फैसला होना जरूरी है ।
- सह प्रति वादियों के मध्य प्रश्न का अंतिम रूप से निपटारा हो गया हो ।
- सह प्रतिवादी पूर्ववर्ती वाद में उचित पक्षकार हो ।
प्रतिनिधि वाद
Qus :- प्रतिनिधि वाद से आप क्या समझते हैं ?Ans :- ऐसा वाद जो किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से न लाया जाकर प्रतिनिधि की हैसियत से लाया जाता है प्रतिनिधि वाद है | { धारा 11 स्पष्टीकरण (6)}
Qus :- अगर वाद क्षेत्राधिकार के अभाव में या वादी की हाजिरी की चूक के कारण खारिज किया गया है तो क्या पूर्वी-न्याय लागू होगा ?
Ans :- नहीं, क्योंकि पूर्वी-न्याय तभी लागू होता है जब वाद का निर्णय गुणावगुण के आधार पर किया गया हो ।
Qus :- पूर्वी-न्याय Res judicata का सिद्धांत किन मामलों में लागू नहीं होता ?
Ans :- क्षेत्राधिकार का अभाव, सूचना ना देना, वाद हेतुक ना होना, अतिरिक्त न्याय शुल्क ना देना, पक्षकार असंयोजन या कूसंयोजन, वाद पत्र में तकनीकी गलती होना, न्यायालय में वादी की अनुपस्थिति, आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करना, न्यायालय के आदेशों की पालना न करना के आधार पर खारिज दावों में पूर्वी - न्याय लागू नहीं होगा ।
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