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Friday, June 12, 2020

TRANSFER OF SUITS [CIVIL PROCEDURE CODE,1908] वादों का अंतरण


 
सामान्यतः वाद उसी न्यायालय में  संस्थित किया जाता है जो न्यूनतम श्रेणी का और सक्षम हो जिसकी अधिकारिता में विषय वस्तु स्थित हो या प्रतिवादी निवास करें या वाद- कारण पैदा हो ।

धारा 22 से 25 में हुए स्थितियां बताई गई हैं जिनमें उपरोक्त न्यायालयों में संस्थित वादों का अंतरण अन्य न्यायालय में किया जा सकता है ।

Qus :- क्या पक्ष कार करार द्वारा ऐसे न्यायालय को क्षेत्राधिकार दे सकते हैं जिसे विधि अनुसार क्षेत्राधिकार नहीं है ?

Ans :- नहीं, क्योंकि न्यायालय क्षेत्राधिकार का स्त्रोत विधि है पक्षकारों का करार नहीं ।

 क्षेत्राधिकार पर आपत्ति

Sec :-21


जिस न्यायालय में वादी वाद दायर करता है प्रतिवादी के अनुसार यदि उसे क्षेत्राधिकार नहीं हो तो प्रतिवादी को क्षेत्राधिकार संबंधी पद को अस्वीकार करना होगा यह आपत्ति प्रतिवादी द्वारा प्रथम अवसर पर की जानी चाहिए जो विवाधक स्थिरीकरण के समय या उसे पूर्व हो बाद में नहीं ।

Qus :-अगर प्रतिवादी क्षेत्राधिकार पर आपत्ति करता है और न्यायालय उसे अस्वीकार कर देता है तो प्रतिवादी को क्या उपचार उपलब्ध है ?

Ans :- ऐसी दशा में प्रतिवादी उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण के लिए आवेदन कर सकता है।

Qus :- क्षेत्राधिकार के आधार पर आपत्ति पर अपीलीय न्यायालय क्या करेगा ?

Ans:- अपीलीय न्यायालय देखेगा कि क्या प्रतिवादी ने विचारण न्यायालय के समक्ष ऐसे आपत्ति की थी और उसे स्वीकार किया गया जिससे प्रतिवादी के साथ अन्याय हुआ तो न्यायालय विचारण न्यायालय के निर्णय आदेश या डिक्री को अपास्त कर देगा ।

Qus :- क्षेत्राधिकार के प्रकार बताओ ?

Ans :- क्षेत्राधिकार पांच प्रकार का है -

मूल क्षेत्राधिकार ,
अपीलीय क्षेत्राधिकार,
धन संबंधी क्षेत्राधिकार,
प्रादेशिक क्षेत्राधिकार, और
विशेष क्षेत्राधिकार |

मुकदमों का अंतरण :-

धारा 22 :-

 जो वाद एक से अधिक न्यायालय में संस्थित किए जा सकते हैं उनको अंतरित करने की शक्ति :-
अगर वाद एक से अधिक न्यायालय में संस्थित किया जा सकता है। और एक न्यायालय में संस्थित किया गया है वहां प्रतिवादी न्यायालय में पक्षकारों को सूचित करने के पश्चात वाद अंतरण के लिए आवेदन कर सकता है

Qus :- क्या प्रतिवादी मुकदमे के अंतरण के लिए कभी भी आवेदन कर सकता है ?

 Ans  :- आवेदन यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर व विवाधक स्थिरीकरण के समय या उससे पूर्व किया जा सकता है ।

Qus  :- प्रतिवादी द्वारा मामला अंतरण के आवेदन पर न्यायालय क्या प्रक्रिया पाएगा ?

Ans  :- न्यायालय अन्य पक्षकारों की आपत्ति सुनने के बाद निर्धारित करेगा कि किस न्यायालय में वाद चलेगा।

धारा 23 :- आवेदन किस न्यायालय में किया जाएगा



  • यदि वाद ऐसे दो न्यायालय में संस्थित हो सकता है जो एक ही अपीलीय न्यायालय के अधीनस्थ है तो वाद के अंतरण के लिए उस अपीलीय न्यायालय में आवेदन किया जाएगा । {धारा 23 (1)}
  • यदि वाद ऐसे अधीनस्थ न्यायालय में दायर किया जा सकता है जो एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ अलग-अलग जिला न्यायालय के अधीनस्थ है तो उच्च न्यायालय में आवेदन किया जाएगा। {धारा 23 (2)}
  • जहां वाद ऐसे न्यायालय में संस्थित किया जाता है जिसका समवर्ती क्षेत्राधिकार वाला न्यायालय तथा वाद दायर किया जाने वाला न्यायालय भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालय के अधीन है तो अंतरण हेतु आवेदन उस उच्च न्यायालय में किया जाएगा जिसके अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर सर्वप्रथम वाद लाया जाने वाला न्यायालय स्थित है। {धारा 23(3)}


धारा 24 :- अंतरण और प्रत्याहरण की साधारण शक्तियां :-


Qus :-  धारा 24 के अंतर्गत वाद अंतरण और प्रत्याहरण की शक्ति किसे दी गई है ?

Ans :- जिला न्यायालय व उच्च न्यायालय को साधारण शक्ति दी गई है।

Qus :- जिला न्यायालय व उच्च न्यायालय अंतरण व प्रत्याहरण की शक्ति  प्रयोग किस प्रकार करते हैं ?

Ans :- किसी पक्ष कार के आवेदन पर अन्य पक्षकारो को सूचना देकर‌‌   सुनने के पश्चात या स्व-प्रेरणा से लंबित वाद अपील या अन्य कार्यवाही का अंतरण व प्रत्याहरण किया जाएगा। {धारा 24 (1)( a)  धारा 24 (1)(b)}

Qus :- क्या ऐसे न्यायालय से वाद या कार्यवाही अंतरित की जा सकती है जिसे उसका विचारण करने की अधिकारिता नहीं है ?

Ans :- हां, ऐसा किया जा सकता है ।

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