JLO की तैयारी के लिए संविधान के महत्वपूर्ण बिंदुओं का अध्ययन [ History of Indian constitution ]

Adv. Madhu Bala
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 चमड़िया लॉ क्लासेज में एक बार आप सबका फिर से स्वागत है आज की पोस्ट में हम कनिष्ठ विधि अधिकारी (JLO) की तैयारी करेगें |  


सबसे पहले इस परीक्षा में कितने पेपर होंगे और कितने प्रश्न आएंगे इस बारे में जानते हैं। प्रदेश की लोक सेवा आयोग द्वारा इस परीक्षा का आयोजन करवाया जाता है इस परीक्षा में 4 पेपर होते हैं।


First paper - Constitution

Second paper - CPC & CRPC

Third paper - Evidence, Limitation Act, Interpretation

Forth paper - Hindi & English


प्रत्येक पेपर में डेढ़ सौ प्रश्न होंगे यह प्रश्न बहुविकल्पीय होते हैं और इस परीक्षा में नकारात्मक अंकन किया जाता है तीन प्रश्न गलत होने पर एक नंबर काटा जाएगा ।

इस परीक्षा की तैयारी के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है सबसे पहले हम "भारत के संविधान" विषय पर चर्चा करते हैं पूर्व परीक्षाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि परीक्षाओं में भारतीय संविधान के जो प्रश्न पूछे गए हैं वह परीक्षा के लिए दिए गए सिलेबस के टॉपिक्स के अलावा भी पूछे गए हैं। इस पेपर में संविधान के इतिहास, संविधान के स्त्रोत, संशोधनों से भी प्रश्न पूछे गए हैं।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी महत्वपूर्ण वाद निर्णय से भी लगभग 10 प्रश्न पूछे जाते हैं।


JLO की तैयारी के लिए संविधान के महत्वपूर्ण बिंदुओं का अध्ययन करते हैं |

भारतीय संविधान का इतिहास


भारतीय संविधान के ऐतिहासिक विकास का काल सन् 1600 से प्रारंभ होता है इसी वर्ष इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई थी उसके पश्चात अंग्रेज भारत में आए जिससे भारतीय संविधान का क्रमिक विकास हुआ इस विकास को हम पांच भागों में विभाजन करके पढ़ेंगे।

  1. 1600-1765

  2. 1765-1858

  3. 1858-1919

  4. 1919-1947

  5. 1947-1950

1.  (1600 से 1765) अंग्रेजों का भारत आगमन


ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।  महारानी एलिजाबेथ द्वारा एक चार्टर के जरिए ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई जिसमें कंपनी को पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया था। इसी कार्यक्रम में अंग्रेजों ने भारत में अपने व्यापारिक केंद्रों का स्थापना की | कंपनी ने मुंबई मद्रास और कोलकाता में अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित किए जिन्हें प्रेसिडेंसी नगर कहा जाता है।


1726 का चार्टर


कोलकाता मुंबई मद्रास प्रेसिडेंट के गवर्नर को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई गवर्नर जनरल की परिषद उप नियम नियम अध्यादेश पारित करने और इनका उल्लंघन करने वालों को दंड देने की शक्ति रखती थी। 


2. (1765 से 1858)  ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना


1773 का रेगुलेटिंग एक्ट


1773 ईस्वी में  रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया गया इसके पारित होने से पूर्व में कोलकाता मुंबई और मद्रास की प्रेसिडेंसी एक दूसरे से अलग तथा स्वतंत्र थी उनका प्रशासन और गवर्नर इंग्लैंड के निदेशक बोर्ड के प्रति उत्तरदायी था इस एक्ट को पारित होने के बाद बंगाल बिहार और उड़ीसा के सिविल इलाकों का प्रशासन का अधिकार भी गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के पास आ गया मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसी बेड का गद्दा प्रेसिडेंसी के अधीन हो गई इस एक्टर ने भारत में एक सुनिश्चित शासन पद्धति की स्थापना की इस एक्ट के जरिए कोलकाता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।


एक्ट आफ सेटेलमेंट 1781


रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस एक्ट का निर्माण किया गया कोलकाता की सरकार को बंगाल बिहार और ओडिशा के लिए विधि बनाने का अधिकार प्रदान किया गया |


पिट्स इंडिया एक्ट 1784


एक्ट आफ सेटेलमेंट 1781 की कमियों को पूरा करने के लिए पिट्स इंडिया एक्ट 1784 पारित किया गया | कंपनी के व्यापारिक कार्यों का प्रबंध और राजनीतिक कार्यक्रमों को एक दूसरे से प्रथक कर दिया | बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की गई।


1813 का राज लेख


इस राजलेख में ब्रिटिश  सरकार ने कंपनी के ऊपर अपने नियंत्रण को बढ़ा दिया और कंपनी का भारत में व्यापारिक  एकाधिकार समाप्त कर दिया | सभी ब्रिटिश निवासियों को भारत से व्यापार करने की छूट दे दी और कोलकाता, मुंबई और मद्रास की सरकार द्वारा बनाई गई विधि को ब्रिटिश संसद से अनुमोदन करवाना अनिवार्य बना दिया। 


1833 का राजलेख अधिनियम


इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद के गठन और अधिकारों में पर्याप्त परिवर्तन किया बंगाल के गवर्नर जनरल को संपूर्ण भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया और इस प्रकार देश के शासन का केंद्रीयकरण कर दिया गया। 1833 के राजलेख अधिनियम से पूर्व निर्मित विधि विनियम कहलाती थी परंतु इस अधिनियम के बाद निर्मित विधियां अधिनियम कहलाने लगी | भारत सरकार द्वारा निर्मित विधि भी ब्रिटिश संसद द्वारा निर्मित विधि की भांति मान्य होती थी राजलेख  की धारा 87 के अनुसार कोई भी भारतीय केवल धर्म, जन्मस्थान, वंश और वर्ण  के दर पर सरकारी सेवा के लिए योग्य नहीं समझा जाता था | दास प्रथा समाप्त कर दी गई | गवर्नर जनरल को एक विधि आयोग नियुक्त करने का अधिकार दिया गया |


भारतीय विधियों के संहिताकरण के “प्रथम विधि आयोग” की स्थापना 1833 के राजलेख अधिनियम का परिणाम थी ।


1853 का राजलेख अधिनियम


इस राजलेख  ने कार्यपालिका तथा विधायिका को पृथक करने के लिए एक निश्चित कदम उठाया | भारतवर्ष के लिए एक पृथक विधान परिषद की स्थापना की गई। विधान परिषद में 12 सदस्य होते थे commander-in-chief गवर्नर जनरल गवर्नर जनरल परिषद के 4 सदस्य और 6 सभासद विधान परिषद के सदस्य होते थे अन्य सदस्य में बंगाल के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश और बंगाल मद्रास, मुंबई, आगरा चार प्रांतों के प्रतिनिधि शामिल थे इस परिषद का मुख्य कार्य देश के लिए विधि बनाना था विधान परिषद द्वारा पारित कोई भी विधेयक बिना गवर्नर जनरल के अधिनियम नहीं बन सकता था

इस अधिनियम ने सर्वप्रथम संपूर्ण भारत के लिए एक विधान मंडल के स्थापना की विधि निर्माण सर्वप्रथम सरकार का एक विशिष्ट कार्य माना गया था जिसके लिए विशेष तंत्र और विशेष परीक्षा प्रक्रिया की अपेक्षा थी। 1857 के विद्रोह ने इस प्रक्रिया को और भी तीव्र गति प्रदान की और ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया। 


3.1858 से 1919 ( कंपनी शासन का अंत )


भारत सरकार अधिनियम 1858 


इस अधिनियम ने भारत के शासन को कंपनी के हाथों से सम्राट को स्थापित कर दिया | भारत का शासन इंग्लैंड की सामग्री साम्राज्य के नाम से किया जाने लगा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर दिया | समस्त अधिकार भारत के राज्य सचिव को सौंप दिए गए भारतीय परिषद के सहायता से भारत का प्रशासन चलाया जाने लगा जिसमें 8 सदस्य थे और 7 बोर्ड के द्वारा जाते थे।

श्री जी एन सिंह के अनुसार सन 1858 के अधिनियम ने भारतीय इतिहास के बड़े भारी युग को समाप्त करके नए युग का सूत्रपात किया जिसमें भारतीय शासन इंग्लैंड के सम्राट के हाथों में आ गया।


भारतीय परिषद अधिनियम 1861


इस अधिनियम में सर्वप्रथम विधि बनाने के कार्य में भारतीयों का सहयोग लेना प्रारंभ किया गया और प्रांतीय विधानसभाओं को विधि बनाने का अधिकार भी दिया इस प्रकार प्रांतीय स्वायत्तता की नियुक्ति  1919 में डाली गई। 

गवर्नर जनरल परिषद को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त थी इस प्रयोजन के लिए केंद्रीय विधान मंडल के सदस्य संख्या को बढ़ा दिया गया | इसमें कम से कम 6 और अधिक से अधिक 12 सदस्य और जोड़ सकते थे जिन्हें अपर सदस्य कहा जाता था इनका कार्यकाल 2 वर्ष का होता था। 

इस अधिनियम में मद्रास तथा मुंबई प्रांतों की विधानसभा को भी विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई। 


ए ओ ह्यूम द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की गई।


भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892 


इस अधिनियम के द्वारा निर्वाचन पद्धति की स्थापना की गई। भारत में प्रतिनिधि सरकार की शुरुआत हुई। विधान परिषद ने कार्यपालिका के ऊपर नियंत्रण स्वीकार किया जिससे देश में विकास की गति को अधिक बल मिला। 


“मार्ले मिंटो सुधार”  भारतीय परिषद् अधिनियम 1909


1906 में लार्ड कर्जन के स्थान पर लॉर्ड मिंटो को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया और जॉन मोरल को भारत का राज्य सचिव नियुक्त किया गया इन दोनों द्वारा भारत में प्रशासनिक स्तर पर काफी सुधार किए गए इसलिए इन सुधारों को “मार्ले मिंटो सुधार” के नाम से जाना जाता है। 

इस अधिनियम ने भारत में एक संकुचित तथा विवेकाधीन  मताधिकार प्रदान किया जिससे देश का विभाजन हुआ | सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान करके इस अधिनियम ने मुसलमानों का पक्ष किया | मुस्लिम हिंदू मतदाताओं की अर्हताएं अलग अलग थी।  इस में स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था |
1914 में हुए प्रथम विश्व युद्ध में भारत वासियों के विदेशी प्रभुत्व को दूर करने के आंदोलन को तीव्र महत्वकांक्षा  प्रदान की | अंग्रेजों ने वर्तमान व्यवस्था में सुधार करना आवश्यक समझा इसलिए सन 1917 में भारत में एक नए राज्य सचिव “मिस्टर मोंटेग्यू” ने भारत में आर्थिक  सुधारों का समर्थन किया। उन्होंने ब्रिटिश संसद में घोषणा की कि भविष्य में ब्रिटिश सरकार की नीति होगी कि प्रशासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों का सहयोग बढ़ाया जाए।  ब्रिटिश सरकार के  एक प्रतिनिधि “लॉर्ड चेम्सफोर्ड” के साथ “मिस्टर मोंटेग्यू” भारत में आए। उन्होंने 1918 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जो मांसफोर्ड योजना कहलाती है इस रिपोर्ट के आधार पर ब्रिटिश संसद ने एक विधेयक प्रस्तुत किया जो 1919 में पारित हुआ जिसे भारत सरकार अधिनियम 1919 नाम दिया गया। 


4.1919 से 1947 स्व शासन का आरंभ


मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट से भारत में एक उत्तरदायी  सरकार की स्थापना तो अवश्य की गई लेकिन यह सरकार भी यथावत ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी  बनी रही इसमें भारतीय सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर तीन कर दिया गया परंतु समस्त कार्यपालिका शक्ति गवर्नर जनरल में निहित थी। 


भारत सरकार अधिनियम 1919


भारत सरकार अधिनियम 1919 पारित किया गया इस अधिनियम से भारत में द्वैध शासन की स्थापना की गई केंद्रीय सरकार के साथ-साथ प्रांतों में भी सरकारों का निर्माण किया गया। 


साइमन आयोग 1927


1919 की के अधिनियम द्वारा स्थापित दोहरी शासन प्रणाली असफल रही क्योंकि भारत में एक उतरा तो पूर्ण सरकार की स्थापना नहीं हो सकी समस्त देश में असहयोग आंदोलन फैल गया इस आंदोलन से अंग्रेजों का ध्यान आकर्षित हुआ भारत वासियों ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। 1927 में साइमन आयोग की नियुक्ति की गई इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था इसलिए सभी भारतीय दलों ने इसका बहिष्कार किया। 


भारत सरकार अधिनियम 1935


1919 के भारत सरकार अधिनियम के बाद दूसरा महत्वपूर्ण कदम भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित करके लिया गया यह एक लंबा और जटिल अधिनियम था इसमें 321 अनुच्छेद और 10 अनुसूचित थी भारत के वर्तमान संवैधानिक ढांचे का अधिकांश हिस्सा सन 1935 के अधिनियम पर आधारित है इस अधिनियम के द्वारा भारत में संघात्मक  सरकार की स्थापना की गई। केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना हुई प्रांतों को शासन करने की स्वतंत्रता दी गई केंद्रीय विधान मंडल की रचना की गई जिसमें विधान सभा और राज्य परिषद 2 / केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया था और इसी अधिनियम के द्वारा फेडरल की स्थापना की गई थी फेडरल नाले को प्रारंभिक अपीलीय और परामर्श दात्री अधिकारिता प्रदान की गई इस न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध प्रिवी कौंसिल में अपील की जा सकती थी। 


क्रिप्स मिशन 1942


ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चर्च मिलने सर स्टीफन क्रिप्स के नेतृत्व में एक दूध भारत में भेजा जिसे क्रिप्स मिशन के नाम से जाना जाता है इस मिशन का उद्देश्य भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श करके युद्ध की स्थिति में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना था और भारत में कई सुधारों की घोषणा करना भी इस मिशन का उद्देश्य था इस विशन का मुख्य कारण संविधान सभा की स्थापना करना था जो भारत के लिए एक नया संविधान बनाएगी। 


कैबिनेट मिशन 1946


ब्रिटिश मंडे मंत्रिमंडल के 3 सदस्य इस मिशन में थे लॉर्ड पैथिक लोरेंस शेफर्ड क्रिप्स और मिस्टर एबी एलेग्जेंडर कैबिनेट मिशन ने भारत के लिए निम्न योजनाएं बनाई जिसमें से प्रमुख है ब्रिटिश भारत और प्रांत को मिलाकर भारत का एक्शन होना चाहिए राष्ट्रीय हितों को विश्व को छोड़कर अन्य सभी विषय प्रांतों के अधिकार क्षेत्र में रहने चाहिए भारत पर बैटरी सरकार की प्रभुसत्ता समाप्त हो जानी चाहिए भारतीय रियासतों को चाहिए कि वे संघ में सम्मिलित होंगे या स्वतंत्र रहेंगे और एक तत्काल अंतरिम सरकार की स्थापना की जाए जिसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हो संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का निर्वाचन होना चाहिए कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को भारतीयों ने स्वीकार किया और इसके परिणाम स्वरूप जुलाई 1946 में संविधान के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ


भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947


15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो गई। 14 अगस्त 1947 से बैटरी सरकार का इन दोनों राज्यों पर कोई नियंत्रण नहीं रहा दोनों राज्यों को संविधान निर्मात्री सभा को संविधान बनाने का अधिकार दिया गया भारत राज्य सचिव का पद समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर राष्ट्रमंडल के सचिव की नियुक्ति की गई भारतीय प्रांतों के ऊपर से ब्रिटिश प्रभुसत्ता समाप्त कर दी गई। 


5.1947 से 1950[ संविधान की रचना ]


कैबिनेट योजना के अनुसार नवंबर 1946 को संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया गया 296 सदस्यों में से 200 से 11 सदस्य कांग्रेस के थे और 73 सदस्य मुस्लिम लीग के थे इन सदस्यों में से प्रमुख सदस्य थे जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, गोपाल स्वामी आयंगर, गोविंद बल्लभ पंत, अब्दुल गफ्फार खान, टी टी कृष्णमाचारी, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, हृदयनाथ कुंजरू सर एच एस गॉड, के टी शाह, मसानी, आचार्य कृपलानी डॉ अंबेडकर, डॉ राधाकृष्णन जयशंकर, अली खान, फिरोज खान, सुहरावर्दी, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा आदि। 

संविधान बनाने के लिए पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा में संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया गया 8 महीने इस पर बहस हुई और उसमें कई संशोधन किए गए संविधान सभा के 11 अधिवेशन हुए 2 वर्ष 11 माह 18 दिन के पश्चात 26 नवंबर 1949 को संविधान निर्माण का कार्य पूरा हो गया। 




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