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Tuesday, July 21, 2020

DOCTRINE OF OSTENSIBLE OWNER & DOCTRINE OF HOLDING OUT (TRANSFER OF PROPERTY ACT, 1882)



DOCTRINE OF OSTENSIBLE OWNER ( द्रश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण )Sec:- 41 
 





दृश्यमान स्वामी द्वारा संपत्ति अंतरण का  सिद्धांत :-


जो व्यक्ति किसी संपत्ति का वास्तविक स्वामी प्रतीत हो किंतु वास्तव में स्वामी ना हो दृश्यमान स्वामी कहलाता है ।

दृश्यमान स्वामी द्वारा संपत्ति अंतरण सिद्धांत के तत्व :-


1. अंतरणकर्ता जो अचल संपत्ति का दिखावटी स्वामी हो ।
2. दिखावटी स्वामी वास्तविक स्वामी की स्पष्ट या परिलक्षित सहमति में हो ।
3. अचल संपत्ति का अंतरण प्रतिफल के लिए करें |
4. अंतरिती ने सदभावना पूर्वक उचित सावधानी से अभी निश्चित कर लिया हो कि अंतरणकर्ता को अंतरण की शक्ति प्राप्त थी तो अंतरण प्रभावी हो जाएगा ।
5. उपरोक्त शर्तों की पूर्ति होने पर अंतरण इस आधार पर शून्यकरणीय नहीं होगा कि अंतरणकर्ता संपत्ति अंतरण करने के लिए प्राधिकृत नहीं था ।

दयाल बपोदर वर्सेस बीबी हाजरा 1974


के वाद में इस सिद्धांत की शर्तें न्यायालय द्वारा बताई गई है ।

Note :-

पर्दानशीन महिला के बारे में न्यायालय यह मानकर चलता है कि उसकी स्वतंत्र सहमति नहीं थी जब तक दूसरा पक्ष साबित ना कर दे कि उसने स्वतंत्र सहमति दी थी ।
अपवाद :-

1. अव्यस्क व्यक्ति :-


व्यस्क व्यक्ति सहमति देने के लिए स्वतंत्र नहीं होता है इसलिए अव्यस्क व्यक्ति के मामलों में दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण का सिद्धांत लागू नहीं होता। सहमति सहमति सर्वदा स्वतंत्र होनी चाहिए और संविदा अधिनियम की धारा 14 के अनुसार होनी चाहिए ।

2. चल संपत्ति :-


चल संपत्ति पर दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

3. न्यायालय द्वारा विक्रय :-


कोई संपत्ति जो न्यायालय द्वारा विक्रय की जाती है उस पर दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

4. नीलामी द्वारा विक्रय :-


नीलामी में विक्रयकी जाने वाली संपत्ति जो रिसीवर द्वारा बेची जाती है उस पर भी जो दृश्यमान स्वामी का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

5. लंबित वाद का सिद्धांत :- 


यदि किसी संपत्ति का अंतरण उस समय किसी ऐसे पक्ष में किया गया हो जिनके बीच उस संपत्ति के विषय में मुकदमा चल रहा है तो अंतरिती  धारा 41 का सरंक्षण नहीं ले सकता । अर्थात विचाराधीन वाद में भी  दृश्यमान स्वामी का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

DOCTRINE OF HOLDING OUT (विवन्ध का अनुदान ) Sec:- 43
         




Sec 43 :- विबंध द्वारा अनुदान  :-


इस सिद्धांत को विबंध द्वारा प्रतिपोषण का सिद्धांत भी कहते हैं ।


प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा अंतरण जो अंतरित संपत्ति में पीछे हित अर्जित कर लेता है :-



जहां कि कोई व्यक्ति कपट पूर्वक या भूलवश यह व्यपदेश करता है कि वह अमुक स्थावर संपत्ति अंतरित करने के लिए प्राधिकृत है और ऐसी संपत्ति को प्रतिफलार्थ  अंतरित करने की प्रव्यज्जना करता है, वहां ऐसा अंतरण अंतरिती के विकल्प पर किसी भी उस हित पर प्रवृत होगा, जिसे अंतरक ऐसी संपत्ति में उतने समय के दौरान कभी भी अर्जित करे जितने समय तक उस अंतरण की संविदा अस्तित्व में रहती है ।
इस सिद्धांत को लागू करने की शर्तें निम्नलिखित हैं |

1. एक व्यक्ति द्वारा कपटपूर्वक या भूल से यह व्यपदेशन करना  कि वह इस अचल संपत्ति को अतंरित करने के लिए प्राधिकृत है ।

2. अंतरिती का इस व्यपदेशन पर विश्वास करना ।

3. अंतरण प्रतिफल युक्त हो ।

4. अंतरणकर्ता द्वारा ऐसी संविदा के पश्चात ऐसी संविदा में हित प्राप्त कर लेना ।

5. अंतरणकर्ता द्वारा पश्चातवर्ती हित प्राप्ति के दौरान अंतरिती को विकल्प प्राप्त है कि वह ऐसे अंतरण का प्रवर्तन करवा ले ।

6. यह धारा ऐसे विकल्प के अस्तित्व की सूचना न रखने वाले सद्भाव पूर्ण प्रतिफल सहित अंतरितियों के अधिकारों का ह्रास नहीं करती ।

Example :-

'A', जो हिंदू है अपने पिता 'B' से अलग हो गया है वह तीन खेत X, Y, Z ,  'C' को यह व्यपदेशन करते हुए बेच देता है कि वह उन्हें अंतरित करने के लिए प्राधिकृत है इन खेतों में से Z खेत 'A' का  नहीं है क्योंकि विभाजन के समय 'B' ने इसे अपने लिए रख लिया था परंतु 'B' के मरने पर Z खेत वारिस के रूप में 'A' को प्राप्त हो जाता है क्योंकि 'C' ने विक्रय संविदा को विखंडित नहीं किया है इसलिए वह 'A' से अपेक्षा कर सकेगा कि Z खेत उसे परिदान करें ।


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