धारा: 9 जब तक अन्यथा वर्जित ना हो सभी सिविल न्यायालय सिविल वादों का विचारण करेंगे ।
सिविल न्यायालय की अधिकारिता से क्या अर्थ है ?
सभी सिविल न्यायालय दीवानी प्रकृति के सभी वादों का विचारण करने का क्षेत्राधिकार रखेंगे केवल उन वादों को छोड़कर जिनका संज्ञान अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से वर्जित है ।
स्पष्टीकरण 1 :- यदि वाद में संपत्ति या पद संबंधी अधिकार विवादित है और ऐसा अधिकार धार्मिक कृत्यों के प्रश्नों के विनिश्चय पर निर्भर है तो वह दीवानी प्रकृति का वाद होगा ।
स्पष्टीकरण 2 :- इस धारा के स्पष्टीकरण एक के प्रयोजन हेतु यह बात महत्वहीन है कि पद के साथ कोई फीस जुड़ी है या नहीं या पद विशेष स्थान से जुड़ा है या नहीं ।
यह स्पष्टीकरण 1976 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया है ।
दीवानी प्रकृति के वादों से क्या अभिप्राय हैं ?
ऐसा वाद जिसमे मुख्य प्रश्न दीवानी अधिकारों के निर्धारण और प्रवर्तन से संबंधित हो दीवानी प्रकृति का वाद कहलाता है।
दीवानी प्रकृति के वाद कौन-कौन से हैं ?
संपत्ति संबंधी अधिकार, पूजा करने का अधिकार, धार्मिक जुलूस का अधिकार, लेखा, भागीदारी, क्षतिपूर्ति संविदा भंग, विवाह विच्छेद या दांपत्य अधिकार पुनर्स्थापना, विशिष्ट अनुतोष जन्मतिथि में सुधार ,विद्युत बिल मैं भिन्नता संबंधी वाद दीवानी प्रकृति के हैं ।
दीवानी प्रकृति के वाद कौन से नहीं हैं ?
जाति संबंधी प्रश्नों से अंतर्ग्रस्त, राजनीतिक प्रश्न, लोक नीति के विरुद्ध, केवल गरिमा व सम्मान बनाए रखना, अधिनियम द्वारा वर्जित, औद्योगिक विवाद, विशुद्ध रूप से धार्मिक अधिकार व अनुष्ठान संबंधी, जहां वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हो संबंधित वाद दीवानी प्रकृति के नहीं हैं ।