अन्तराविभाची वाद ऐसा वाद होता है जिसमें वास्तविक विवाद प्रति वादियों के बीच होता है वादी का वाद की विषय वस्तु मैं कोई हित नहीं होता अर्थात् इसमें प्रतिवादी एक दूसरे के विरुद्ध अभिवचन करते हैं वे उस ऋन या संपत्ति के संबंध में अभिवचन करते हैं जिसमें वादी का कोई हित नही होता और वह हक रखने वाले प्रतिवादी को उसे देने को तैयार रहता है ।
1. ऋन या संपत्ति संबंधी विवाद हो ।
2. दो या अधिक व्यक्ति एक दूसरे के विरुद्ध दावा करें ।
3. जिस व्यक्ति से संपत्ति लेनी है उसका उसमें प्रभार या खर्चों के अलावा कोई हित नहीं हो ।
4. वह अन्य व्यक्ति ऋन या संपत्ति का भुगतान या परिदान करने को तैयार हो ।
अंतराविभाची वाद में कथन के अलावा निम्न कथन होगे ।
1. वादी का खर्चो और प्रभारो के अलावा कोई हित नहीं होगा ।
2. वादी की किसी प्रतिवादी के साथ मिलीभगत नहीं है ।
3. प्रतिभागियों के दावे प्रथकत: प्रथकत: है ।
अगर न्यायालय वस्तु को जमा करवाए जाने योग्य समझता है तो न्यायालय में जमा करवाने का आदेश दे सकेगा
अगर कोई प्रतिवादी वादी के विरुद्ध आवा चला रहा है तो उस दावे को रोक दिया जाएगा
सुनवाई की प्रक्रिया :- न्यायालय पहली बार सुनवाई पर-
1. वादी को दावा कृत वस्तु से प्रतिवादी के प्रति संपूर्ण जिम्मेदारी से मुक्त कर उसे खर्चे देकर वाद से निकाल सकेगा ।
2. या उचित समझे वाद के अंतिम निपटारे तक उसे पक्षकार के रूप में रख सकेगा ।
3. अगर न्यायालय को पक्षकारों की स्वीकृति या अन्य साक्षी समर्थ बनाते हैं तो वह हक का निर्णय कर सकेगा ।
अगर समर्थ नहीं बनाते हैं तो पक्षकारों के मध्य विवाधको की रचना कर परीक्षण का निर्देश देगा । और किसी दावेदार को वादी बनाने का आदेश दे सकेगा और मामले को अग्रसारित करेगा । (Rule 4)
Qus :- क्या कोई अभिकर्ता अपने स्वामी या कोई किराएदार अपने भूस्वामी के विरुद्ध अंतराविभाचनीय वाद दायर कर सकता है ?
Ans :- नहीं, ऐसा नहीं किया जा सकता ।(Rule 5)
Nice article but too short
ReplyDeleteNice Article
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