Qus:-1 दीवानी प्रकृति के वाद कौन-कौन से हैं ?
Ans :- संपत्ति संबंधी अधिकार, पूजा करने का अधिकार,
धार्मिक जुलूस का अधिकार,
भागीदारी, लेखा, अपकृत्य की क्षतिपूर्ति, संविदा भंग,
विवाह विच्छेद दांपत्य अधिकारों की पुर्नस्थापना,
किराया, पद, वेतन, स्थाई व्यादेश, प्रबंधन, विशिष्ट अनुतोष, जन्मतिथि में सुधार,
विद्युत बिल में भिन्नता संबंधी वाद दीवानी प्रकृति के हैं ।
Qus :- 2 दीवानी प्रकृति के वाद कौन-कौन से नहीं हैं ?
Ans : - जाति संबंधी प्रश्नों से अन्तर्ग्रस्त, राजनीतिक प्रश्न,
लोक नीति के विरुद्ध,
केवल गरिमा व सम्मान बनाए रखना,
अधिनियम द्वारा वंचित ,औद्योगिक विवाद,
विशुद्ध रूप से धार्मिक अधिकार व अनुष्ठान संबंधी,
जहां वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हो संबंधित वाद दीवानी प्रकृति के वाद नहीं है ।
Qus :-3 प्राड़: न्याय (Res-judicata) का सिद्धांत किन मामलों में लागू नहीं होता ?
Ans :- क्षेत्राधिकार का अभाव, सूचना ना देना,
वाद हेतुक ना होना, अतिरिक्त न्याय शुल्क ना देना,
पक्षकार असंयोजन या कुसंयोजन,
वाद पत्र में तकनीकी गलती होना,
न्यायालय में वादी की अनुपस्थिति,
आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करना,
न्यायालय के आदेशों की पालना न करना के आधार पर खारिज दामों में प्राड़ न्याय का सिद्धांत लागू नहीं होता ।
Qus :- 4 विदेशी न्यायालय का निर्णय कब निश्चयात्मक नहीं होगा ?
Ans :- सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय ने निर्णय नहीं सुनाया हो,
निर्णय गुणावगुन के आधार पर आधारित नहीं हो,
निर्णय भारतीय विधि या अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रतिकूल हो,
निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल हो,
निर्णय कपट से लिया गया हो,
निर्णय भारत में प्रवृत्त विधि के भंग पर आधारित दावे को ठीक ठहराता है।
Qus :- 5 प्रतिस्थापित तामिल से क्या अभिप्राय है ?
Ans :- जहां यह विश्वास करने का कारण है कि प्रतिवादी सम्मन की तामिल से बच रहा है या उस पर तामील मामूली प्रकार से नहीं हो सकती तो सम्मन की एक प्रति -
न्याय सदन के सहज दृश्य स्थान पर,
उसके गृह के सहज दृश्य भाग पर चस्पा कर जैसा न्यायालय ठीक समझें,
समाचार पत्र में विज्ञापन द्वारा जो उसके निवास, कारोबार क्षेत्र में प्रचलित की जा सकती है।
Qus :-6 वाद पत्र में कौन-कौन सी विशिष्टियॉं होनी चाहिए ?
Ans :- वाद पत्र में निम्नलिखित विशिष्टियॉं होनी चाहिए
1 न्यायालय का नाम जिसमें वाद संस्थित किया गया है ;
2 वादी का नाम, वर्णन, निवास ;
3 अभिनिश्चित करने तक प्रतिवादी का नाम, वर्णन, निवास ;
4 वादी या प्रतिवादी अवयस्क या विकृतचित्त हो तो कथन ;
5 वाद हेतुक गठित करने वाले तथ्य और कब पैदा हुआ ;
6 न्यायालय को क्षेत्राधिकार देने वाले तथ्य ;
7 अनुतोष ;
8 अगर दावे का कोई भाग त्यागा गया है तो रकम/संपत्ति ;
9 क्षेत्राधिकार और न्यायालय शुल्क के लिए वाद की विषय वस्तु का मूल्य ।
Qus :- 7 वाद पत्र को स्वीकार करने पर न्यायालय क्या प्रक्रिया अपनाएंगा ?
Ans :- वाद पत्र स्वीकार करने पर न्यायालय प्रतिवादी पर समन तामील का आदेश देता है और वादी को सादे कागज पर वाद पत्र की उतनी प्रतियां पेश करने का आदेश देगा जितने प्रतिवादी हैं ।
समन तामील के आदेश के पारित होने के 7 दिनों में वादी तामील के लिए अपेक्षित शुल्क अदा करेगा ।
Qus :- 8 न्यायालय में उपस्थित वाद पत्र कब न्यायालय द्वारा नामंजूर कर दिया जाता है ?
Ans :- कोई वाद पत्र नामंजूर किया जा सकेगा जब -
वह वाद हेतुक नहीं दर्शाता ;
दावा कृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है और वादी न्यायालय द्वारा अपेक्षित समय में उसे ठीक कराने में असफल रहा है ;
अनुतोष का मूल्यांकन तो सही है लेकिन वाद पत्र अपर्याप्त स्टांप पेपर पर लिखा है और वादी उसे न्यायालय द्वारा अपेक्षित समय में ठीक कराने में असफल रहा है ;
वाद पत्र के कथन से स्पष्ट हो कि वह विधि द्वारा वर्जित है ;
वाद पत्र दोहरी प्रति में प्रस्तुत नहीं किया गया हो ;
जहां वादी आदेश 7 नियम 9 की पालना नहीं करता वहां वाद पत्र न्यायालय द्वारा नामंजूर कर दिया जाता है ।
Qus :- 9 मुजरा (प्रतिसादन) Set -off से क्या अभिप्राय है और उसकी आवश्यक शर्तें क्या है ?
Ans :- ऐसा अभिवचन जिसमें प्रतिवादी वादी के दावे की अभिस्वीकृति करता है साथ-साथ दावे को पूर्णत: या भागत: चुकाने के लिए अपना अन्य दावा भी स्थापित करता है ।
आवश्यक शर्तें :-
वाद धन वसूली का हो ;
वाद की धनराशि निश्चित हो ;
वैध रूप से वसूली योग्य हो ;
प्रतिवादी या प्रतिवादियों द्वारा धनराशि वसूली योग्य हो ;
धनराशि वादी या वादियों से वसूली योग्य हो ;
धनराशि न्यायालय की धन संबंधी अधिकारिता से ना हो
दोनों पक्षकारों के मुजरा के दावो में हैसियत वही हो जो वाद में है ।
Qus :- 10 न्यायालय विवाधको की संरचना कब और किन आधारों पर करता है ?
विवाधको की रचना के आधार -
पक्षकार या उसके अभिकर्ता या प्लीड़र द्वारा शपथ पत्र पर किए गए कथन से ;
प्रश्न माला या अभिवचनों के उत्तर से ;
दस्तावेज की अंतर्वस्तु से जो उसमें प्रस्तुत है । ( आदेश 14 नियम 3 )