प्रत्याहरण
Qus :- प्रत्याहरण का क्या अर्थ है ?
Ans :- वादी द्वारा अपने दावे को या उसके किसी भाग को छोड़ देना प्रत्याहरण है |
Qus :- दांडिक मामलो मे प्रत्याहरण संबंधी प्रावधान कहा दिये गए हैं ?
Ans :- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 257 मे परिवाद वापस लेने संबंधित प्रावधान दिये गए हैं |
Qus :- त्यागे गए भाग के लिए कब अलग दावा नहीं हो सकता ?
Ans :- अगर प्रत्याहरण न्यायालय की अनुमति से नहीं किया गया हो तो त्यागे गए भाग के लिए
अलग दावा नहीं हो सकता |
Qus :- अगर वादी अयोग्य है और दावा वादमित्र के माध्यम से लाया जाए तो क्या वादमित्र
दावे का प्रत्याहरण कर सकेगा ?
Ans :- हाँ, ऐसा अधिकार सीमित होगा और न्यायालय की अनुमति के बिना ऐसा नहीं किया जा सकेगा [ Rule 1 ]
[ Note :- न्यायालय अनुमति तभी देगा जब न्यायालय को संतुष्टि होगी प्रत्याहरण
वादी के पक्ष में हैं इस हेतु शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा ]
Qus :- अगर अगर दावा प्रतिनिधियात्मक है और प्रतिनिधि त्याग करना चाहता है तो
न्यायालय क्या प्रक्रिया अपनाएगा ?
Ans :- प्रतिनिधि को न्यायालय के समक्ष आवेदन करना होगा | सभी हितबद्ध व्यक्तियों
को सूचना दी जाएगी | उनकी सहमति मिलने पर ही न्यायालय प्रत्याहरण की इजाजत देगा |
समायोजन
न्याय प्रशासन का सिद्धांत है कि अनावश्यक दावों से बचा जाए और पक्षकार समझौता करना चाहे तो
समझौते में कोई परेशानी ना आए | समझौता वाद की किसी भी अवस्था में किया जा सकता है |
इसके लिए न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है और न्यायालय अनुमति दे देता है |
यदि दावा वाद मित्र या प्रतिनिधि की हैसियत से किया जाता है तो न्यायालय को अति
सावधानी से कार्य करना होगा ताकि पक्ष कार का हित सुरक्षित हो सके | [ Rule 3( ख )]
पक्षकार द्वारा दावे को लिखित व हस्ताक्षरित करार या समझौते द्वारा समायोजन करना होता है
न्यायालय से ऐसे समझौते को अभिलिखित करने का आदेश देता है और उसी अनुरूप डिक्री पारित
करता है और ऐसी डिक्री की अपील नहीं होती |
समझौते की डिक्री न्यायालय का निर्णय नहीं है बल्कि उस बात की स्वीकृति है जिन्हें पक्षकारों ने
स्वीकार कर लिया है | [ Rule 3]