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Wednesday, August 17, 2022

विक्रय Sale (sec 54) Transfer of property Act 1882

 



Qus :- विक्रय किसे कहते हैं ? विक्रेता के अधिकार व कर्तव्य बताओ ।

Ans :- कीमत के बदले स्वामित्व का अंतरण विक्रय कहलाता है 

अथवा 

विक्रय ऐसी कीमत के बदले स्वामित्व का अंतरण है जो दी जा चुकी है, या जिसके लिए जाने का वचन दिया जा चुका है, या उसका कोई भाग दे दिया गया है, या दे दिए जाने का वचन दिया जा चुका है । (Sec 54)

Element :- 

1. दो पक्षकार :- 

विक्रय में कम से कम दो पक्षकार होने चाहिए जिसमें विक्रेता को संदाय करने में सक्षम होना चाहिए ।

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 7 के अनुसार वही व्यक्ति संपत्ति अंतरित कर सकता है जो संविदा करने में सक्षम है अर्थात

अवयस्क ना हो,

पागल या विकृत-चित ना हो,

विधि द्वारा निर्योग्य घोषित नहीं किया गया हो।

मोहरी बीबी बनाम धर्मदास घोष (AIR 1930 कोलकाता 539 )

के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि अवयस्क व्यक्ति द्वारा संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता क्योंकि वह संविदा करने में सक्षम नहीं होता है ।

2. विषय वस्तु :- 

विक्रय में वस्तु अचल संपत्ति होनी चाहिए यह दो प्रकार की होती है ।

(a) मूर्त संपत्ति, 

(b) अमूर्त संपत्ति 

आनंद बहेरा बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा (ए आई आर 1956 एस सी 17)

के वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि भूमि एवं भूमि से होने वाले फायदे अचल संपत्ति माने गए हैं अतः झील से मछली पकड़ने तथा ले जाने के अधिकार को भूमि से होने वाला फायदा माने जाने से अंतरण योग्य अचल संपत्ति है ।

3. प्रतिफल :- 

विक्रय में प्रतिफल होना जरूरी है जिसका भुगतान वर्तमान या भविष्य में हो सकता है ।

स्टेट ऑफ चन्नई बनाम गेगन डंकरले एंड कंपनी (ए आई आर 1958 एस सी 560)

के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि विक्रय के व्यवहार में प्रतिफल के रूप में कहीं ना कहीं धन का होना आवश्यक है यदि प्रतिफल धन के रूप में नहीं होकर वस्तु के रूप में होता है तो यह संव्यवहार विक्रय न होकर विनिमय होगा ।

4. विक्रय का रजिस्ट्रेशन :-

अगर संपत्ति का मूल्य ₹100 या अधिक है तो केवल रजिस्टर्ड विलेख द्वारा विक्रय हो सकता है । अमूर्त अचल संपत्ति में हमेशा रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है ।

5. स्वामित्व का अंतरण :- 

विक्रेता द्वारा क्रेता को संपत्ति का कब्जा दिया जाना जरूरी है ।

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 55 में क्रेता व विक्रेता के अधिकार और कर्तव्य बताए गए हैं इनके अधिकार व कर्तव्य (दायित्व) को निम्न भागों में बांटा जा सकता है ।

बी.आर. कोटेश्वर राव बनाम जी. रामेश्वरी बाई (ए आई आर 2004 आंध्र प्रदेश 34)

के मामले में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि विक्रय के संव्यवहार में विक्रय पूर्ण होते ही संपत्ति में क्रेता का स्वत्व विक्रेता से क्रेता को अंतरित हो जाता है ।

विक्रय पूर्ण होने से पहले विक्रेता के अधिकार व कर्तव्य :- Sec.55

1. दोष बताना :- 

यदि संपत्ति में कोई निर्माण संबंधी दोष है जिसे केवल विक्रेता ही जानता है, क्रेता मामूली सावधानी से नहीं जान सकता ऐसे दोष बताना  विक्रेता का कर्तव्य है ।

2. हक संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत करना :- 

अगर क्रेता कागजों की जांच करना चाहता है तो विक्रेता का कर्तव्य है कि वह उन्हें उनके समक्ष प्रस्तुत करें ।

3. हक संबंधी प्रश्नों के उत्तर देना और विलेख निष्पादित करना :-

 विक्रेता क्रेता द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देगा जिसकी उसे जानकारी है और विवेक पत्र पर हस्ताक्षर करेगा यह उसका कर्तव्य है ।

4. दस्तावेज की सुरक्षा :-

 विक्रेता का दायित्व है कि वह कब्जा देने की तारीख तक सभी दस्तावेजों को संभाल कर अपने पास रखें ।

5. लाभ प्राप्त करना :- 

विक्रेता संपत्ति के स्वामित्व के अंतरण से पूर्व सभी लाभ प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।

विक्रय पूर्ण होने के बाद विक्रेता के अधिकार और कर्तव्य ( दायित्व ) :- 

1. कब्जा प्रदान करना :-

 विक्रेता का दायित्व है कि विक्रय पूर्ण होने के बाद वह संपत्ति का कबजा क्रेता को प्रदान कर दे ।

2. हित का अंतरण :-

 विक्रय पूर्ण होने के बाद विक्रेता को संपत्ति के समस्त हितों को क्रेता को अंतरित कर देना चाहिए ।

3. भुगतान के लिए वाद दायर करना :- 

अगर विक्रेता ने विक्रय के पूर्ण होने से पहले ही क्रेता को संपत्ति का कब्जा दे दिया है और भुगतान (संपत्ति का बिक्रित मूल्य) नहीं लिया है तो भुगतान ना मिलने पर वह क्रेता के विरुद्ध भुगतान के लिए वाद दायर कर सकता है ।

4. विक्रय संविदा का विखंडन :-

 अगर विक्रय संविदा लिखित में की गई है और क्रेता द्वारा किसी शर्त की पालना नहीं की जाती है तो विक्रेता संविदा विखंडन के लिए वाद ला सकता है ।

विक्रय पूर्ण होने से पहले क्रेता के अधिकार व दायित्व (कर्तव्य ) :- 

1. क्रेता को विक्रेता की संपत्ति में किसी ऐसी बात का पता हो जो विक्रेता के हित में हो और विक्रेता को इस बात की कोई जानकारी ना हो तो उस बात को बताने क्रेता का दायित्व है ।

2. क्रेता विक्रेता को क्रय धन देने के लिए बाध्य हैं संविदा पूर्ण होने के पश्चात क्रेता को अपनी खरीदी हुई संपत्ति का क्रय मूल्य विक्रेता को चुकाना होगा ।

3. क्रेता क्रय धन पर चार्ज (धारणाधिकार) लेने का अधिकारी है ।

विक्रय पूर्ण होने के पश्चात क्रेता के अधिकार व कर्तव्य  (दायित्व):- 

1. जब कब्ज़ा क्रेता के पास पहुंच जाए तो किसी प्रकार की हानि, क्षति, टूट-फूट क्रेता को सहन करनी होगी ।

2. अगर क्रेता को स्वामित्व मिल गया है तो उस संपत्ति संबंधी भार या किराया आदि क्रेता को वहन करना होगा ।

3. विक्रय पूर्ण होने के बाद क्रेता यदि संपत्ति का कब्जा नहीं लेता है तो संपत्ति से समस्त अभिवृद्धिया विक्रेता से लेने का अधिकारी होगा । पश्चातवर्ती अभिवृद्धिया भी विक्रेता से लेने का अधिकारी होगा ।




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