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Friday, July 21, 2023

Case laws of CRPC




 हरियाणा राज्य बनाम दिनेश कुमार (2008)


उपरोक्त वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी का अर्थ बताया है माननीय न्यायालय ने कहा है कि पुलिस अधिकारी द्वारा अभियुक्त को डराना या अभियुक्त को शब्द या कार्यवाही के द्वारा अभिरक्षा के लिए अभिप्रेत करना, जिसमें वह न्यायिक अभिरक्षा में हो या न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दे और या उसके निदेश को समर्पित कर दे। 


डी.के. वसु बनाम वेस्ट बंगाल राज्य


उपरोक्त वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकारों को बताया है। 


अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य


इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों को आवश्यक रूप से गिरफ्तार नहीं करने और मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना अपराध में गिरफ्तार होने का आदेश नहीं दिया जाएगा, यह निर्देश जारी किया है। यह वाद मुख्य रूप से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41A से संबंधित है। इस वाद  में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह बताया कि 7 वर्ष से कम कारावास के प्रावधान वाले अपराधों में चाहे वह संज्ञेय अपराध हो या असंज्ञेय अपराध हो पुलिस अधिकारी को धारा41Aके नोटिस की पालना करनी होगी। 


उड़ीसा राज्य बनाम देवेंद्रनाथ पड़ी


आरोप विरचित करने के चरण में धारा 91 लागू नहीं कर सकते यह सिद्धांत धारित किया।आरोप विरचित करने या संज्ञान लेने के समय अभियुक्त को कोई सामग्री प्रस्तुत करने का कोई अधिकार नहीं है |


मधु लिमये बनाम एस.डी.एम. मुंगेर


इस वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा सीआरपीसी के चैप्टर 8 के प्रावधान लोक हित में होने के कारण भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन नहीं करते हैं इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया। 

सीआरपीसी की धारा 144 उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान एक रूप से वैध ठहराए गई। 


विजय मनोहर अर्बट बनाम काशीराम राजाराम सवाई 


विवाहित बेटी साधन संपन्न होने पर माता पिता के भरण हेतु उत्तरदाई होगी धारा 125 सीआरपीसी से संबंधित मामला


मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम


इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि धारा 125 सीआरपीसी सभी धर्मों पर लागू हो चाहे उनके धर्म यह बात नहीं मानने होती हो। मुस्लिम महिला भी इस धारा के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है। 


दानियल लतीफी बनाम भारत संघ


मुस्लिम पत्नी धारा 125 सीआरपीसी अंतर्गत भरण पोषण का दावा करने से वंचित करना मात्र ही पर्याप्त नहीं है।


गुलाम अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1981 एससी 2198


धारा 144 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आदेश किसी भी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदाई है। 


कर्नाटक राज्य बनाम प्रवीण तोगड़िया


धारा 144 दंड प्रक्रिया संहिता से संबंधित मामला


सी मंगेश बनाम कर्नाटक राज्य ए आई आर 2010 एस सी 2768


उपरोक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभी निर्धारित किया कि FIR मूल साक्ष्य नहीं है उसका प्रयोग उसके निर्माता की पुष्टि करने के लिए किया जा सकता है। 


ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य


पुलिस अधिकारी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत संज्ञेय अपराध के कारित   किए जाने से संबंधित जानकारी मिलने पर प्राथमिकी दर्ज करनी होगी यह मामला FIR से संबंधित है। 


नंदिनी सत्पथि बनाम पी.एल. दानी


दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161(2) के तहत प्रश्नों के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है जिसके उत्तर में अपराधिक आरोपों की प्रवृत्ति होगी। 


उत्तर प्रदेश राज्य बनाम शिंगारा सिंह।

 

उपरोक्त वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि जब अभियुक्त की संस्वीकृति सीआरपीसी की धारा 164 के तहत प्रदान किए गए ढंग से दर्ज नहीं किया गया है तो मजिस्ट्रेट का मौखिक साक्ष्य यह साबित करने के लिए ग्राहय्  नहीं है  कि संस्वीकृति बनाया गया था। 


जाहिरा हबीबुल्लाह शेख  बनाम  गुजरात राज्य


 दोषपूर्ण  अन्वेषण से संबंधित मामला |




मुबारक अली बनाम मुंबई राज्य


दांडिक अधिकारिता का सामान्य सिद्धांत यह  है कि अपराधी के स्थान अथवा उसके किसी अन्य समान गुण  द्वारा अधिकारिता का निर्धारण किया जाता है |


देवरा पल्ली लक्ष्मी नारायण रेड्डी बनाम वी नारायण रेड्डी


 उपरोक्त वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 156(3)के तहत आदेशित पुलिस और धारा 202 के तहत निर्देशित अन्वेषण के बीच विभेद को स्पष्ट किया |


दिनेश बनाम राजस्थान राज्य


 न्यायालय के निर्णय में भी पीड़ित व्यक्ति की पहचान प्रकट नहीं की जा सकती |


 भूपेंद्र शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य



न्यायालय के निर्णय मैं भी यौन हिंसा से पीड़ित व्यक्तियों के नाम प्रकट नहीं किए जा सकते |


 हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य


 उपरोक्त वाद में उच्चतम न्यायालय  के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सीआरपीसी की धारा 319 के क्षेत्र और सीमा पर विचार किया |


दीना बनाम भारत संघ


 उपरोक्त वाद में निष्पादन के रूप में फांसी के बारे में बताया गया है |


 डी.के. गणेश बाबू बनाम पी.टी. मनोकरण


 यह वाद अग्रिम जमानत से संबंधित है |


 गुरबख्श सिंह बनाम पंजाब राज्य


 इसमें भी उच्चतम न्यायालय ने अग्रिम जमानत के सिद्धांत प्रतिपादित किए |

 

मोतीराम बनाम मध्यप्रदेश राज्य


 जमानत नियम है, जेल अपवाद है |


 गुजरात राज्य बनाम  सलीम भाई अब्दुल गफ्फार शेख


 उच्च न्यायालय द्वारा इनकार किए बिना (POTA) अभियुक्त व्यक्ति के जमानत आवेदन को प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार नहीं कर सकता |


बाबा बनाम  महाराष्ट्र राज्य


 दुर्बल सिंह बनाम राज्य


 न्यायालय की अभियुक्त की परीक्षा शक्ति के बारे में  बताया गया है |


 किंग एंपरर बनाम नजीर अहमद


 पुलिस और न्यायपालिका के कार्य एक दूसरे के अनुपूरक है |

 मलिकार्जुन कोडा  गली बनाम कर्नाटक राज्य


 सीआरपीसी की धारा 372 के परंतुक  के तहत पीड़ित को अपील करने का अधिकार 31/ 12/ 2009 के बाद दिए गए दोष मुक्ति के आदेशों के विरुद्ध उपलब्ध है और इस तरह के अधिकार के प्रयोग के लिए अपील करने की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है |


  यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ


 एफ. आई.आर.  की प्रति 24 घंटे मे पुलिस की वेबसाइट पर अपलोड हो जानी चाहिए |

 


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